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देव दर्शन

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वीतराग

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जिन्होंने  घाती कर्मरुपी शत्रुओं को क्षण भर में क्षय किया हैं | वे ही वीतराग हैं , जिन हैं , सर्वग हैं , सर्वदर्शी  हैं , अरहंत हैं , भगवंत हैं | कोटि भव के पुण्य से जिन के दर्शन प्राप्त हैं और करोड़ों भवों के पाप भी नष्ट हो जाते  हैं | ऐसे वीतराग भगवंत  के चरणों में नमस्कार , स्तुति आराधना भक्ति करने से समाधि ,संसिद्धि ,आदि को प्राप्त करता हैं | ऐसा सम्यक जीव इस संसार से पार हो जाता है | जिनेन्द्र रूपी बाग में स्थित सम्यकत्व रूपी धैर्य व्यन जिव कल्पवृक्ष के आरोहण की तरह मोक्षरुपी लक्ष्मी को प्रात कर लेते है , ऐसी वीतराग दशा सर्वोदय है |                                                                                                                 सहनयोगी  भक्तामरहंसमनिषी...