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वीतराग
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जिन्होंने घाती कर्मरुपी शत्रुओं को क्षण भर में क्षय किया हैं | वे ही वीतराग हैं , जिन हैं , सर्वग हैं , सर्वदर्शी हैं , अरहंत हैं , भगवंत हैं | कोटि भव के पुण्य से जिन के दर्शन प्राप्त हैं और करोड़ों भवों के पाप भी नष्ट हो जाते हैं | ऐसे वीतराग भगवंत के चरणों में नमस्कार , स्तुति आराधना भक्ति करने से समाधि ,संसिद्धि ,आदि को प्राप्त करता हैं | ऐसा सम्यक जीव इस संसार से पार हो जाता है | जिनेन्द्र रूपी बाग में स्थित सम्यकत्व रूपी धैर्य व्यन जिव कल्पवृक्ष के आरोहण की तरह मोक्षरुपी लक्ष्मी को प्रात कर लेते है , ऐसी वीतराग दशा सर्वोदय है | सहनयोगी भक्तामरहंसमनिषी...
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प्रतिज्ञा पत्र आचार्य श्री ज्ञानसागरा य नमः श्री वर्धमानाय नमः आचार्यश्रीविद्यासागरायनमः ज्ञानवर्धनीपाठशाला gyanvardhanipathshala@gmail.com (9827235603) प्रतिज्ञापत्र दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति के राजहंस परम पूज्य संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के स्वर्णिम दीक्षा दिवस वीर निर्वाण संवत 2543 आषाढ़ शुक्ल पंचमी के पुनीत अवसर पर मैं आचार्य श्री को साक्षी मानकर जीवनपर्यंत के लिए निम्न प्रतिज्ञा करता...